कलागृह में लोग इकट्ठा होने शुरू हो गए थे । परंतु आज दिलों में वो उमंग नही थी , हवाओं में घुंघरुओं सी थिरकन नही थी, चांद जैसे अपनी चांदनी बिखेरना ही भूल गया था , एक अजीब सा मर्म था चारों ओर ।
नृत्यकला व अभिनय की धनी चांदनी अक्सर इस कलागृह में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करती थी व तालियों से पूरा कलागृह गूंजायमान हो उठता था । अपनी कला व इस कलागृह से गहन प्रेम था चांदनी को । हर बार प्रदर्शन के शुरू व अंत मे इस मंच को बड़े आदरभाव से स्पर्श करती थी , जैसे किसी बड़े के चरणस्पर्श कर दुयाएँ लेती हो ।
आज इस रंगमंच से आखिरी स्पर्श के लिए लाया जा रहा था चांदनी को , ज़िन्दगी को अचानक से अलविदा जो कह गयी थी वो ।
नाजाने क्यूँ अचानक से उस चांदनी को , उस रंग भरे बादल को प्रभु ने अपने आगोश में ले लिया । ज़िन्दगी के रंगमंच को छोड़कर , सबके दिलों पर बिजली गिराकर , कहाँ चली गयी वो चांदनी ।
This post is written for the prompt “Colosseum” under #fridayfotofiction hosted by Tina and Mayuri
Read my another #fiction piece on women empowerment
Comments
Post a Comment