निशा दिल्ली में पली बढ़ी और उसकी शादी जयपुर के रहने वाले सतीश से हो गयी । कुछ सालों से नौकरी की वजह से सतीश देहरादून में रह रहा था । निशा ने भी देहरादून में ही एक छोटी से कंपनी में नौकरी कर ली थी । निशा अपने पति , अपने बेटे सागर का खूब ख्याल रखती , नौकरी पर भी जाती , और इसके अलावा जब उसे समय मिलता तो हिंदी मूवीज देखती व अपने लिखने के शौक के लिए वो ब्लॉगिंग भी करती । उसकी मनपसंद मूवी थी “3 इडियट्स” , उसका मनपसंद गाना व डायलाग Alllll is welllll , जब कभी कोई प्रॉब्लम में फंस जाती तो इसी डायलाग से अपने मन को समझा लेती ।
वही रोज़ जैसा दिन था , सुबह सुबह की भागदौड़ , निशा किचन में खाना बना रही , टिफिन पैक कर रही थी , साथ साथ कभी बेटे सागर को नहलाती , उसे दूध देती , फिर खुद भी आफिस जाने की चिंता ।
उधर से सतीश की आवाज़ आयी ” निशा ….चाय बन गयी ?”
“आज चाय तुम खुद बना लो न सतीश , मैं आफिस के लिए लेट हो रही हूं ” निशा ने जल्दी जल्दी बेटे का बैग पैक करते हुए कहा ।
सतीश : “हाँ हाँ , मैं चाय खुद बना लूं और तुम तो उस रमेश के साथ ऑफिस में ही चाय पीना पसंद करोगी”
निशा : “अरे , आज बहुत important मीटिंग है आफिस में , जल्दी नही पहुंची तो …”
सतीश बीच मे ही बात काटते हुए बोला ” हाँ, तुम तो जैसे कंपनी की CEO हो न , बहानेबाज ……..”
( निशा के मन को थोड़ी टीस पहुंची , दिल ने ठंडी सांस भरी , पर Alllll is welllll, ऐसा बोलकर मन को समझा लिया )
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निशा ट्रैफिक जाम के कारण लेट हो गयी थी ।
बॉस : “Where is Nisha , अभी तक आयी क्यों नही , उसको पता है ना आज दिल्ली से कंपनी के लोग आ रहे हैं , पता नही ऐसी औरतें नौकरी करती ही क्यों हैं ” निशा के अभी तक आफिस न पहुंचने पर बॉस गुस्से में था ।
तभी निशा पहुंच गई “Sir , Sir , sorry Sir , वो ट्रैफिक जाम इतना था कि …..”
बॉस: “ट्रैफिक जाम था या पति को बढ़िया बढ़िया नाश्ता कराने में लेट हो गयी ?”
( निशा के मन को फिर धक्का लगा , पर क्या किया जा सकता था बॉस के सामने , इसलिए Alllll is welllll )
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शाम को घर पहुंची तो आते ही बेटा सागर कहने लगा “मम्मी , आज बहुत मुश्किल होमवर्क मिला है , एक essay लिखना है The unforgettable adventurous day in my life , मम्मी आप लिख दो न please
निशा ने बेटे को प्यार किया , अपने लिए चाय का कप हाथ मे पकड़कर कॉपी में essay लिखने बैठ गई ।
थोड़ी देर में ही सतीश घर आ गया ” यार निशा , बहुत भूख लगी है आज lunch भी नही किया , जल्दी से खाना खिला दो ”
“पर अभी तो खाना बना ही नही , मैं तो यह …..” कॉपी दिखाते हुए बोली ।
सतीश : ” कब उतरेगा तुम्हारे सिर से यह ब्लॉगिंग का भूत , कोई नही पढ़ेगा तुम्हरी ये बकवास ” ( बिना कुछ जाने की निशा क्या लिख रही थी , सतीश ने बोलना शुरू कर दिया )
” खाना बने न बने , परिवार जाए भाड़ में , पर तुम्हारा आफिस और तुम्हारी ब्लॉगिंग नही छूटनी चाहिए ” सतीश बोलता रहा और निशा सुनती रही
(किचन में खाना बनाने में जुट गई, आंख नम हो गयी थी , सोचने लगी – हर जगह मुझे judge क्यूँ किया जा रहा है , घर पर भी , बाहर भी , बिना मुझे समझे मेरे बारे में बाकी लोग अनुमान क्यूँ लगा रहे हैं , क्या मैं अपनी duties ठीक से नही निभा रही हूं ? मन में कई तरह के विचार आये पर इस बार भी मन को समझा लिया Alllll is welllll )
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अगले दिन
निशा : ” सतीश , माँ से फोन पर बात हुई थी आज , पापा की तबियत ठीक नही है , मैं रात की गाड़ी से कुछ दिन उनके पास चली जाती हूँ ”
सतीश : “लो अब नई मुसीबत , महारानी जी के पिताजी बीमार हैं अब , यहां सागर को कौन संभालेगा , और तुम्हारा भाई नही जा सकता क्या माँ बाप का ख्याल रखने ?”
निशा : ” मेरा भाई क्यों जाएगा तुम्हारे माँ पापा का ख्याल रखने , मैं अपने मायके दिल्ली नही बल्कि जयपुर , तुम्हारे माँ पापा के पास जाने की बात कर रही हूं ”
सतीश के मन मे चुप्पी छा गयी और वो गहरी सोच में डूब गया ।
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यह एक औरत की व्यथा है जिसे कई बार , कई जगह , कई लोगों द्वारा judge किया जा रहा है । क्या यह एक आज़ाद समाज का आज़ाद दृष्टिकोण है ? क्या औरत को पूर्ण रूप से आज़ाद होने का हक़ नही है ? उसे क्यूँ बार बार अपने बारे में स्पष्टीकरण देने की ज़रूरत पड़ती है ? कहीं आज़ाद सोच की नई परिभाषा लिखने की ज़रूरत तो नहीं है ? #redefinefreedom
निशा मुस्कुराते हुए बोली “चलो अब बैठे ही रहोगे या मेरी train की बुकिंग भी करवाओगे , उठो Alllll is wellllll ”
( आज शायद सतीश अपनी संकीर्ण सोच और निशा की आज़ाद सोच में फर्क देख पा रहा था )
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