बचपन याद करने बैठूं तो काले घने बादलों सा एहसास होता है
एक माँ के इलावा कोई भी तो प्यार नहीं करता था मुझे
माँ तो कभी ” मेरा प्यारा बच्चा ” कहकर चूम लेती तो कई बार मुझे गले लगाकर कहती ” दुनिया की सबसे खूबसूरत गुड़िया तो भगवान् ने
मुझे ही दे दी “….. मैं भी माँ से पूरा ज़ोर लगाकर लिपट जाती थी ।
आँखें नम हो जाती थी माँ की ,इतना प्यार करती थी मुझे….
लेकिन घर के बाकी सब लोग , यहाँ तक कि बाबा भी मुझे “कलंक” कहते रहते थे , माँ को भी अक्सर सुनाया जाता “कलंक लगाकर रख दिया पूरे खानदान पर ”
मेरा छोटा सा नादान सा मन समझ नहीं पाता था कि मैं दरअसल हूँ क्या —-एक खूबसूरत सा कलंक ?
कलंक शब्द का मतलब भी तो नहीं समझाया था स्कूल में मैडम ने ।
एक दिन स्कूल से लौटते हुए कुछ घृणित नज़रों ने मुझ पर वार कर दिया , घर आकर जब माँ को उन मैले हाथों व् पहली बार अपने तन पर महसूस किये उस घिनौने दर्द का ज़िक्र किया तो माँ की दिल की धड़कन जैसे अचानक बढ़ गयी , आँखें खुली की खुली रह गयीं पर माँ ने मेरे होठों पर ज़ोर से ऊँगली दबाकर कहा ” चुप बस चुप मुँह पर ताला लगा ले ; मेरी गुड़िया नहीं तो जीने नहीं देंगे हमे ।
उस वक़्त समझ तो पूरी तरह आयी नहीं थी मुझे ,
पर उस दर्द से अंदर जैसे कुछ बिखर सा गया था , कुछ टूट सा गया था ।
कई दिन तक देखती रही , जब भी माँ अकेली होती तो उसके आँसू थमने का नाम नहीं लेते थे ।
अजीब सी घुटन होने लगी थी , माँ बस बेबस सी गूंगी सी , मुझे भी बोलने नहीं दे रही थी और उस दिन से माँ ने मुझे ” मेरी खूबसूरत गुड़िया ” या ” मेरा प्यारा बच्चा” कहकर पुकारना भी छोड़ दिया ।
पर बाबा तो अभी भी उसी नाम से पुकार रहे थे “कलंक”
आखिर मुझे कोई तो समझा दे क्या हो गया , होता क्या है ये कलंक , क्या कोई खता हो गयी थी मुझसे ?
ज्यों ज्यों बड़ी हो रही थी मैं , कुछ कुछ समझ आने लगी , चुप्पी की आड़ में जो जुर्म किये गए उनका पर्दा आँखों के सामने से हटने लगा था
चुप्पी – मेरे जन्म पे आंसुओं की चुप्पी
चुप्पी- माँ की बेबसी की चुप्पी
चुप्पी- घिनौनी आँखों के ज़हर की चुप्पी
चुप्पी-खौफ्फ़ की चुप्पी…….
इस चुप्पी को तोडना होगा ,घुटन का बंधन छोड़ना होगा
गुमसुम सी कब तक रहूंगी ,घुटघुट के कब तक जिऊंगी
चुप्पी नहीं ,बुलंद आवाज़ बनना है मुझे
बेबस नहीं ,आत्मविश्वास बनना है मुझे
नादान बचपन में समझ नहीं पायी तो तुमने क्या सोचा – ज़िन्दगी भर के लिए बिखर गयी क्या मैं?
आवाज़ मैंने अपनी बुलंद कर दी ,
मुझे ‘कलंक’ कहने वालों को नज़रअंदाज़ करने लगी
डटी रही , प्रगति के पथ पर शांत सी बहती रही
नहीं बही तो बस केवल माँ की बेबसी के संग कभी नहीं बही
पर आज नाजाने क्यूँ , रोके नहीं रुक रहे मेरे ये आंसू , आंसुओं के संग बहे जा रही हूँ ।
उस खूबसूरत से चेहरे में जाने क्या करिश्मा है कि नज़र ही नहीं हट रही ।
“माँ” मुझे माँ बोलने वाली एक नन्ही सी जान ने आज धरती पर कदम रखा है।
हाँ ! माँ बन गयी हूँ मैं भी ।
ह्रदय से ये ख़ुशी संभाली नहीं जा रही ।
पर दिल के किसी कोने में जो खौफ्फ़ छिपा है उसका क्या ?
जो मैंने सहा वो सब मेरी बेटी को तो नहीं सहना पड़ेगा ?
कोई उसे कलंक कहकर तो नहीं पुकारेगा ?
मेरी माँ ने जैसे मेरे मन का खौफ्फ़ भांप लिया , नन्ही परी को गोद में उठाकर गुनगुनाने लगीे :
तेरे पंखों में सारे सितारे जड़ूं
तेरी चुनर सतरंगी बुनूँ
तेरे नैनों में सजा दूँ नया सपना
हो री चिरईया नन्ही सी चिड़िया ।
माँ की लोरी से नन्ही परी तो कुछ ही पलों में सो गयी ।
उसे पालने में सुलाकर माँ मेरे करीब आयी
मुझे आगोश में लेते हुए , माथे को चूमते हुए बोली
” मेरा प्यारा बच्चा , भगवान् ने दुनिया की सबसे खूबसूरत गुड़िया मुझे ही दे दी ”
ज़ुबाँ पर लगा वो ताला खुल रहा है धीरे धीरे हौले हौले
बिखरे टूटे टुकड़े सारे जुड़ रहे हैं धीरे धीरे हौले हौले
माँ के आंसू व् बेबसी आज साहस बनकर उनकी आँखों से झिलमिला रहे थे ।
लम्बी डगर है पर हिम्मत है संग ,हर आंसू बनेगा इक नयी तरंग
बेखौफ्फ़ आज़ाद है जीना मुझे
ज़माना चले न चले मेरे संग
बोलूंगी हल्ला आवाज़ दबंग ,लड़ने चली हूँ आज़ादी की जंग
बेखौफ्फ़ आज़ाद है जीना मुझे
The above mentioned हो री चिरईया नन्ही सी चिड़िया ……ज़ुबाँ पर लगा वो ताला खुल रहा है धीरे धीरे हौले हौले….. and बेखौफ्फ़ आज़ाद है जीना मुझे , are hindi songs from Satyamev Jayate , a show by Aamir Khan . All its episodes left a deep mark in my heart .
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