ज़िंदगी में बहुत से लोग मिलते हैं , बिछड़ते हैं, सभी के साथ खट्टी मीठी यादें बनती हैं I किसी के साथ कुछ ही समय का रिश्ता रहता है तो किसी के साथ आजीवन रिश्ता बन जाता है I कई लोग सदा सम्पर्क में रहते हैं पर कई लोग ऐसे भी आते है जीवन में जो सदा सम्पर्क में रहें चाहे न रहें पर मन में उनकी यादें हमेशा बनी रहती हैं I वे भुलाये नहीं भूलते
कॉलेज टाइम की बात है , youth festival के लिए त्यारियां शुरू होने जा रही थी I कई प्रकार की ऑडिशंस हो रही थी I किसी कमरे में singing का ऑडिशन , कहीं dancing तो कहीं theatre के लिए ऑडिशन I मैंने भी सोचा चलो इस बार थिएटर में कोशिश करके देखी जाये I बहुत से चाहवान स्टूडेंट्स आये हुए थे जो नाटक करने के इच्छुक थे I मैं भी डरते डरते चली गयी ऑडिशन देने I अभी भी याद है कि जब मेरी बारी आयी और डायरेक्टर Sir ने कुछ एक्ट करने को कहा तो मैंने लाठी लिए एक बूढ़ी औरत की एक्टिंग की I
शाम तक Sir ने सभी के ऑडिशन लेने के बाद कॉलेज में से 7 स्टूडेंट्स को चुना जिनमे से 1 मैं भी थी I नाटक के लिए 7 की टीम बनाई गयी जिनमे 6 लड़के और 1 लड़की I वो लड़की थी मैं I हमारी वो टीम भुलाये नहीं भूलती . नाटक का नाम था आँखें
वो नाटक दिल के बहुत करीब हो गया था I कितनी ही rehearsals , college टाइम से पहले भी , बाद में भी ….दिन ब दिन हम सब की दोस्ती व् नाटक के लिए प्रेम बढ़ता जा रहा था I
नाटक आँखें की कहानी कुछ इस प्रकार थी की 7 लोग , जिनमे से 6 अंधे हैं व् एक गूंगा है , वे सब का आपस में खून का कोई रिश्ता नहीं है I बस उन सब में गरीबी का रिश्ता है और हाँ अंधेपन का भी I सभी एक परिवार की तरह एक ही छत के निचे रहते हैं I रोज़ाना भीख मांगकर लाते हैं और अपनी रोज़ी रोटी चलाते हैं I जो उनके परिवार में उम्र में सबसे बड़ा है उसे बाकी के सब लोग मामा कहकर पुकारते हैं I जो अकेली लड़की है उसका नाम सीता है घर में वो भी भीख मांग कर लाती है और परिवार के लिए रूखी सुखी रोटी भी वही पकाती है I राजू, मंगलू, सीता, पुजारी, करीम, मामा व् गूंगा सब प्यार से रहते हैं व् मिलजुलकर खाते हैं I वो रूखी सुखी रोटी भी उन्हें बहुत स्वाद देती है I
सीता का role मुझे दिया गया .. अंधी भिखारिन का यह role काफी challenging था मेरे लिए , पर धीरे धीरे मैं इस में ढल रही थी I अंधे बनकर ही मुझे नाटक में एक लालटेन जलाना था जो काफी मुश्किल था व् रिस्की भी I
एक दिन नाजाने कहाँ से भीख में बहुत रुपये मिल जाते हैं,सबके मिलाकर करीब 1000 रुपये I सब सोचने लगते हैं कि इतने सारे रुपयों का कुछ अच्छा इस्तेमाल होना चाहिए I कुछ ऐसी चीज़ लेनी चाहिए जो सबके काम आये I सोच सोच कर सब यह फैसला करते हैं कि किसी एक कि आँखों का ऑपरेशन करवा लिया जाये I पुरे परिवार में इतना प्यार है कि सभी परिवारवाले एक दूजे कि आँखों कि रौशनी चाहते हैं , न कि अपनी I
अंत में ये फैसला होता है कि राजू की ऑंखें ठीक करवाई जाएँ I ऑपरेशन होता है पर ऑंखें ठीक होने के बाद जैसे ही राजू घर आता है , सीता को देखता है तो उसके मन में मैल आ जाता है I उसे अपना परिवार , उनका रहन सहन , वो सुखी रोटी , कुछ भी नहीं भाता अब I सीता को वो गलत दृष्टि से देखने लगता है , ज़बरदस्ती करने की कोशिश करता है. सीता के मन को ठेस पहुँचती है I
पर समय का पहिया कुछ ऐसा घूमता है कि राजू की आँखें वापिस चली जाती हैं किसी एक्सीडेंट में I इस बात का सीता पर सबसे ज़्यादा असर होता है , वह राजू कि आँखें दोबारा चली जाने पर पागल हो जाती है I और तालियां बजा बजाकर रोने लगती है I
यह नाटक आँखें के अंत वाला scene जिसमे सीता को पागलों की तरह रोना था , इस scene को करने के लिए जो भाव , जो दुःख , जो आंसू सीता के चेहरे पर दिखने चाहिए थे , उसके लिए मुझे ( सीता को ) डायरेक्टर सर से बहुत बार डाँट पड़ती रही I हर बार डायरेक्टर सर का यह कहना ” सीता , तुम अच्छे से नहीं रो रही हो , सीता का दुःख दिल से समझो , भाव नहीं आ रहे तुम्हारे चेहरे पर ”
बहुत rehearsals करनी पड़ी , रात को अपने कमरे में बैठी मैं सीता की ज़िंदगी को सोच सोचकर उसका दुःख महसूस करने की कोशिश करती रहती …. क्या बीता होगा उसके मन पर जिसका अपना कोई परिवार नहीं है , जिस को वो अपना परिवार समझती है , वो उसे गन्दी नज़र से देख रहा है ….उस अंधी भिखारिन का दर्द धीरे धीरे मेरे जेहन में उतरने लगा था I
मेरा सीता के साथ एक गहरा नाता जुड़ चुका था . कॉलेज में सभी लोग मेरा असली नाम भूल चुके थे , सब सीता ही बुलाने लगे थे I
जिस दिन finally यह नाटक आँखें youth festival में perform किया हमने , उस दिन last scene तक पहुँचते पहुँचते मैं वाकई में अंदर से भर गयी थी I राजू की ऑंखें जाने के दुःख में मैं पागलों की तरह जो रोई तो पर्दा गिरने के बाद तक तालियां बजाती रही और रोती रही .. ऑडियंस की तालियां मुझ पागल की तालियों के साथ साथ बजनी शुरू हो गयी थीं I
ऐसा गहरा नाटक आँखें मन पर गहरी छाप छोड़ गया , और वो 7 लोगों की दोस्ती जो न भूली हूँ न भुला पाऊँगी I
I am taking my alexa rank to the next level with #myfriendalexa
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