बचपन, ये वो शब्द है जिसे सुनते ही मन मे असीमित यादों का भंडार उभरने लगता है , यह ऐसा शब्द है जिस सुनते ही उस गुज़रे वक़्त को एक बार फिर से जीने का मन कर उठता है । बचपन की ऐसी प्यारी यादें समेट रखी हैं इस मन ने की कभी होंठों पर मुस्कुराहट आ जाती है तो कभी किसी अपने को याद करके आंख भर आती है । कितना प्यारा वक़्त था वो बचपन , वो अपनी मस्ती में रहना, कोई चिंता नही , कोई फिक्र नहीं, एकदम आज़ाद पंछी की तरह और उसी पंछी की तरह ऊंचे आसमान में उड़ने का सपना , वो हसीन लम्हे भुलाये नहीं भूलते ।
बचपन की बात उठते ही मन में सबसे पहले अपने भाई बहनों के साथ बिताया वक़्त और फिर कुछ खास दोस्तों के साथ बिताया वक़्त याद आता है जिसमे प्यार व तकरार दोनों शामिल होते थे ।
1. बड़े भाई के साथ प्यार भरा बचपन
मुझे याद है कैसे अपने बड़े भाई मुनीश भैया के साथ खेलना , हँसना , रोना, रूठना, शिकायत लगाना, एक दूजे को मनाना , गले लगाना और फिर से खेल में लग जाना । हमारा एक खास खेल हुआ करता था – पूरे कमरे के फर्श पर talcum powder छिड़ककर उस पर अलग अलग drawing करना और फिर उसी फर्श पर slide करना , वाह क्या खेल था। एक और बात हमेशा याद रहती है कि जब मैंने scooty चलाना नया नया सीखा तो मुनीश भैया को अपने पीछे बिठा के चलाने का शौक होता था । जब हम वापिस घर आते तो भाई के शब्द होते थे ” आगे से मैं नही जाऊंगा इसके साथ, पैदल चलने वाले लोग भी इससे आगे निकल जाते हैं ” ।
2.नानी के घर पर बिताया वक़्त
गर्मी की छुट्टियां होतीं तो नानी( जिनको सब बड़े माँ बुलाते थे) के घर सभी मामा, मासी व उनके बच्चे इकठ्ठे हो जाते थे। नानी का घर चाहे बहुत छोटा था पर सब मे स्नेह इतना अधिक था कि कभी कोई कमी प्रतीत ही नही हुई । दो ही तो कमरे थे घर मे , एक मे सब बड़े लोगों की बातों और ताश का दौर और दूसरे में बच्चों की मस्ती । कभी कोई और मेहमान आ जाता तो हम बच्चे तो रसोई घर मे ही अपना खेल का अड्डा जमा लेते थे । वाह रे ज़िन्दगी क्या बचपन था वो ! मिलजुलकर खाना बनाना और फिर भाई बहनों के संग एक ही थाली में खाना , उस भोजन का स्वाद ही अलग होता था । हमारे खेल भी तो देसी होते थे जैसे स्टापू , पिठुकरम ,गीटे( 5 पत्थरों के साथ खेले जाने वाला खेल) । Dumb charades खेलते खेलते तो हम लोटपोट ही हो जाते।
जब रात को lights off हो जाती और सोने को कहा जाता तो भी रजाई के अंदर गप्पों का सिलसिला जारी रहता था ।
3. Hostel में दोस्तों के संग
पढ़ाई के दौर में जब होस्टल जाना पड़ा तो वहां कुछ खास मित्र व यादें बन गयीं जो भुलाये नही भूलतीं। वो dance parties और classes bunk करना हमेशा याद रहेगा ।
देर रात तक tv पर डरावने सीरियल देखना और फिर आधी रात को दूसरों को डराना। याद आता है जब एक बार होस्टल के फंक्शन के लिए हमने एक parody तैयार की । जब सबके role तय हो गए तो पता चला कि मुझे रावण का role दिया गया था। रावण को दलेर मेहंदी के एक song ” फट्टे चक्क दियाँगे” पर नाचना भी था । बखूबी निभाया था मैंने वो role , बड़ी बड़ी मूछें लगाकर और काले रंग का कुर्ता पजामा पहनकर।
बहुत भीनी भीनी यादें हैं बचपन की जो इस वक़्त लिखते हुए आंखों के आगे घूम रही हैं । अब तो सब दोस्त , भाई- बहन , दूर दूर हैं , बस whatsapp या facebook पर मुलाकात हो जाती है । पर बचपन का वो घनिष्ठ प्रेम व स्नेह अब भी कायम है ।
आपने भी तो बचपन मे ज़रूर कुछ ऐसे खेल खेले होंगे और यादें संजोयी होंगीं । कभी कभी लगता है कि आज की पीढ़ी कुछ ज़्यादा ही टेक्नोलॉजी की बीमारी से ग्रसित है । ना वैसे खेल न वैसी मस्ती। बड़े होकर इनके मन में बचपन की कोई भीनी खुशबू आएगी क्या ?
Linking this post to #ThankfulThursdays with @Deepagandhi 1, @misra_amrita, @mayuri6, @twinklingtina
Comments
Post a Comment