बचपन याद करने बैठूं तो काले घने बादलों सा एहसास होता है एक माँ के इलावा कोई भी तो प्यार नहीं करता था मुझे माँ तो कभी ” मेरा प्यारा बच्चा ” कहकर चूम लेती तो कई बार मुझे गले लगाकर कहती ” दुनिया की सबसे खूबसूरत गुड़िया तो भगवान् ने मुझे ही दे दी “….. मैं भी माँ से पूरा ज़ोर लगाकर लिपट जाती थी । आँखें नम हो जाती थी माँ की ,इतना प्यार करती थी मुझे…. लेकिन घर के बाकी सब लोग , यहाँ तक कि बाबा भी मुझे “कलंक” कहते रहते थे , माँ को भी अक्सर सुनाया जाता “कलंक लगाकर रख दिया पूरे खानदान पर ” मेरा छोटा सा नादान सा मन समझ नहीं पाता था कि मैं दरअसल हूँ क्या —-एक खूबसूरत सा कलंक ? कलंक शब्द का मतलब भी तो नहीं समझाया था स्कूल में मैडम ने । एक दिन स्कूल से लौटते हुए कुछ घृणित नज़रों ने मुझ पर वार कर दिया , घर आकर जब माँ को उन मैले हाथों व् पहली बार अपने तन पर महसूस किये उस घिनौने दर्द का ज़िक्र किया तो माँ की दिल की धड़कन जैसे अचानक बढ़ गयी , आँखें खुली की खुली रह गयीं पर माँ ने मेरे होठों पर ज़ोर से ऊँगली दबाकर कहा ” चुप बस चुप मुँह पर ता...
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